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ऐसा क्यों है – लिंक्डइन पर बमुश्क़िल कोई हिंदी में लिखता है, जबकि यूट्यूब पर हिंदी के वीडियो काफ़ी लोकप्रिय हैं?

पिछले सप्ताह, मैं हिंदी इंटरनेट के बारे में काफ़ी सोच रहा था, हालांकि मुझे इसके बारे में लिखने का समय नहीं मिला।

गूगल के अनुसार, ९८% भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्ता केवल भारतीय भाषा में या तो अंग्रेजी के साथ इंटरनेट का उपयोग करते हैं। भारतीय भाषा के ४५% उपयोगकर्ता भारतीय भाषाओं में पढ़ना पसंद करते हैं। भारतीय भाषा के ६३% उपयोगकर्ता केवल भारतीय भाषाओं में पढ़ना पसंद करेंगे।

फिर भी, भारत में सभी कॉर्पोरेट वेबसाइटों में से १% से भी कम हिंदी या भारतीय भाषाओं में हैं। कॉर्पोरेट के नज़रिए से, सबसे प्रभावशाली मीडिया प्रकाशक और पत्रकार वे हैं जो अंग्रेजी में लिखते हैं। लिंक्डइन पर बमुश्क़िल कोई हिंदी या भारतीय भाषाओं में लिखता है, जबकि यूट्यूब पर भारतीय भाषाओं के वीडियो काफ़ी लोकप्रिय हैं।

हम घर पर या मनोरंजन के लिए अपनी ख़ुद की भाषाओं में ही बोलना और सुनना चाहते हैं। मगर हम अपनी भाषाओं में ना तो पढ़ या लिख सकते हैं और ना ही उन्हें काम के दौरान इस्तेमाल करना चाहते हैं।

ऐसा क्यों है

भारत में, आम तौर पर अंग्रेजी को ही व्यवसाय की मुख्य भाषा माना जाता है। हम अंग्रेजी में ही व्यावसायिक ईमेल लिखते हैं। हम अंग्रेजी में ही बिजनेस कार्ड छापते हैं। हम अंग्रेजी में व्यापार की बैठकें करते हैं। हमारे सभी एंटरप्राइज़ सॉफ़्टवेयर का इंटरफ़ेस अंग्रेज़ी में ही है। कोई आश्चर्य नहीं कि हम व्यावसायिक वेबसाइट बनाने और व्यावसायिक नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म पर बात करने के लिए अंग्रेजी का ही उपयोग करते हैं।

ऐसा क्यों है?

भारत में, आम तौर पर अंग्रेजी को ही कुलीन और अमीर लोगों की भाषा माना जाता है। अंग्रेजी को ही दुनिया घूमने वाले और दक्षिण बॉम्बे और लुटियंस दिल्ली में रहने वाले लोगों की भाषा माना जाता है। और, इसलिए, शिक्षा या काम के लिए बड़े महानगरों में आने वाले छोटे शहरों के हर लड़के के लिए, कॉलेज की कक्षा या कंपनी की टीम में अंग्रेजी बोलने वालों के साथ अच्छा सम्बन्ध बनाना चाहने वाली मध्यम वर्ग की हर लड़की के लिये, और बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ काम करना चाहने वाले हर छोटे व्यवसायी के लिए, अंग्रेजी भाषा बहुत ज़रूरी बन गई है।

ऐसा क्यों है?

अंग्रेजी भाषा की प्रतिष्ठा का एक कारण तो कलोनियल हैंगओवर ही है। हमारे पूर्व के शासक अंग्रेजी में बात करते थे। हमारे कुलीन वर्ग जिन्हें उनका संरक्षण प्राप्त था, वह भी अंग्रेजी में बात करते थे। हर कोई जो ऊपर उठना चाहता था, उनके लिए भी अंग्रेजी सीखना ज़रूरी बना। ७५ सालों के बाद भी, सदियों से चली आ रही सोच को दूर करना मुश्किल है।

अंग्रेजी के इस्तेमाल का एक कारण बस व्यावहारिकता है। दुनिया भर में बहुराष्ट्रीय निगम अंग्रेजी में काम करते हैं। भारतीय दफ़्तरों में भी, दो दर्जन अलग-अलग मातृभाषाओं में बोलने वाले लोगों के लिए, अंग्रेजी ही सभी लोगों से समझी जाने वाली आम भाषा है। भारतीय इंटरनेट पर भी, वेबसाइट यूआरएल, फ़ोन का यूजर इंटरफेस, और मोबाइल एप्लिकेशनों की मुख्य भाषा अंग्रेजी ही है, क्योंकि ज़्यादातर प्रोटोकॉल और प्लेटफॉर्म अमेरिकी कंपनियों ने ही बनाएँ हैं।

इन कारणों से हमने अपनी भाषाओं में पढ़ने और लिखने की क्षमता ही खो दी है। जब हम अपनी भाषा ही भूल चुके हैं, तो हमारी संस्कृति का विकास कैसे होगा? यह दुविधा केवल भारत की ही नहीं है। हर यूरोपीय देश भी इसी दुविधा में फँसा पड़ा है। केवल चीन में ही अभी भी दफ़्तरों में और इंटरनेट पर अपनी चीनी भाषा का ही प्रयोग करते हैं।

अंत में, अंग्रेजी के महत्व का एक कारण हमारे खुद का नेटवर्क है। हम किसके साथ रोज़ाना बातचीत करते हैं, हम इंस्टाग्राम पर किसकी तस्वीरें देखते हैं, हम किन मीडिया और क्रिएटरों को अपना समय देते हैं, यह सब हमारी अपनी भाषा को इस्तेमाल करने की क्षमता को बदलते हैं। मेरे काफ़ी सारे दोस्त दक्षिण मुम्बई या दक्षिण दिल्ली में बड़े हुए हैं। उन्होंने विदेशों में पढ़ने के लिए या काम करने के लिए समय बिताया है। उनके अपने दोस्त जितने भारतीय हैं उतने ही विदेशी या प्रवासी भी हैं। वह ज़्यादातर अंग्रेजी में ही बोलते और लिखते हैं, उनमें से कई भारतीय भाषा की लिपियों को नहीं पढ़ सकते हैं, और उनमें से शायद ही कोई भारतीय भाषाओं में लिख सकते है। अगर वह मेरी तरह छोटे शहरों में बड़े होते और हिंदी के विद्यालयों में पढ़ते तो शायद अभी भी अपनी भाषाओं का इस्तेमाल कर पा रहे होते।

और, फिर भी, मेरे बहुत से दोस्त भी, जब भी अपनी भाषा बोलने वालों से मिलते हैं, बहुत ही ख़ुशी से हिंदी, या बांग्ला, या तमिल, या मलयालम, या गुजराती, (या फ्रेंच, या स्पेनिश, या चीनी) में बोलना शुरू कर देते हैं। सारी दुनिया में, अंग्रेज़ी हमारे दिमाग़ की भाषा ज़रूर बन गई है, मगर हमारा दिल हमारी अपनी भाषाओं में ही गाता है।

पिछले कुछ हफ्तों में, कई लोगों ने मुझसे (अक्सर विनोद के साथ) पूछा है कि मैं हिंदी में क्यों लिख रहा हूं और मुझे बताया है कि लिंक्डइन और इंस्टाग्राम पर वह मेरे पोस्ट को केवल अनुवाद की सुविधा के कारण ही पढ़ पा रहे हैं। कई और लोगों ने मुझे बताया है कि उन्हें यह अच्छा लग रहा है कि मैं हिंदी में लिख रहा हूं और मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा बार मैं दफ़्तर में या लिंक्डइन पर हिंदी में बातचीत का हिस्सा बना हूँ। मैं इन दोनों ही प्रतिक्रियाओं से हैरान नहीं हुआ हूं।

लगभग एक दशक पहले, जब मैं शंघाई में चीनी भाषा सीख रहा था, तो मेरे दिमाग़ में ख़्याल आता था कि अंग्रेजी, हिंदी और चीनी भाषाओं में धाराप्रवाह त्रिभाषी होना दिलचस्प और उपयोगी दोनों होगा। यह दुनिया की आधी से अधिक आबादी है, तीन सबसे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक शक्तियां है, और सबसे बड़े तीन बाजार हैं। मैं अभी भी अंग्रेजी को ही अपनी पहली भाषा मानता हूँ, लेकिन हिंदी में दोबारा से लिखना दिलचस्प लगा है, और एक दिन शायद चीनी भाषा का अभ्यास करने का समय भी आ ही जाएगा।

पिछले दिनों में मैंने अपनी दो वेबसाइटें (एक हिंदी इंटरनेट पर और एक मेरी फोटोग्राफी पर) हिंदी भाषा में शुरू कीं हैं। मैं शायद हर रोज़ नहीं लिख पाऊँगा, लेकिन मुझे फिर से लिखने में मजा आ रहा है, और मुझे यकीन है कि मैं लिखना जारी रखूंगा।

अगली पोस्ट में, मैं सवाल पूछना और जवाब देना चाहता हूं: व्यापार, टैकनोलजी और लोक-नीति के बारे में हिंदी में ऑनलाइन लिखने वाले सबसे अच्छे पत्रकार कौन हैं? मेरे एक पत्रकार दोस्त ने मुझे कहा है कि शुरू से ही इन विषयों में भारतीय भाषाओं के पत्रकारों ने ज़्यादा काम नहीं किया है। मगर मैं इस टिप्पणी को सच मानना नहीं चाहता हूँ। इस सवाल का जवाब खोजने में आपका सहयोग ज़रूरी होगा। मुझे अच्छा लगेगा अगर आप इस बारे में अपनी टिप्पणी जोड़ देंगे।

By गौरव मिश्रा

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